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टीचर भाभी को सेक्स के अनूठे पाठ 3

हॉट ओरल कहानी में मुझे मेरी सहेली के देवर ने मेरी गर्म चूत का कोना कोना चाट कर इतना मजा देकर झड़वाया कि क्या बताऊँ. आप खुद ही पढ़ें.

फ्रेंड्स, मैं सारांश आपको अपनी सेक्स कहानी की दुनिया में फिर से मजा देने हाजिर हूँ.

आपने मेरी कहानी के पिछले भाग हाय मैं शर्म और वासना से लाल हुई में पढ़ा कि कैसे दीप्ति भाभी और मैं एक ऐसी हालत में पहुंच गए, जहां से वापस आना या उन्हें जाने देना, ना उसके लिए मुमकिन था और ना ही मेरे लिए.
सारांश के साथ मैं भी सब कुछ भूल कर चूमाचाटी में लग गई थी.

अब पिछली बार की ही तरह, आगे की कहानी दीप्ति भाभी की जुबानी सुनते हैं.

अब आगे हॉट ओरल कहानी:

उस समय मेरे मन को पता नहीं क्या चाहिए था, लेकिन शायद मेरे बदन को सब पता था.
ना जाने कौन सी जन्म की भूख थी, क्योंकि मैं सारांश को ऐसे चूम रही थी, जैसे उस चुम्बन पर मेरा जीवन निर्भर हो.

मेरे सब्र का बांध टूट कर छिन्न-भिन्न हो चुका था.
और शुक्र है कि उस पल में सारांश ने मुझे और नहीं सताया बल्कि उस टूटे हुए बांध से आते हुए अरमानों के आवेग को समेटने के लिए उसने पल भर में ही अद्भुत फुर्ती के साथ मुझे बिना चुम्बन तोड़े ही बिस्तर पर पटक दिया और मेरे ऊपर छा गया.

मेरे पैर बिस्तर से नीचे की ओर लटके थे और मेरे धड़ पर सारांश बौराये बादलों सा बरस रहा था.

मेरी हथेलियों में अपनी हथेलियां फंसा कर, मेरे बदन पर अपना बदन भिड़ा कर, मेरे होंठों से अपने होंठों को लड़ाकर जैसे वो मुझमें घुस ही जाना चाहता था.
अगर मेरे बस में होता तो मैं भी उसे अपने शरीर में डुबो लेती.

शायद और कोई अहसास नहीं बाकी था जो मेरी उस भूख को बयान कर सके.

हम दोनों में भूख मिटाने की तो एक होड़ सी मची थी.
मैं डाल-डाल तो वो पात-पात.

घड़ी के कांटे की कुछ दूरी नाप लेने के बाद जब उसने अपने होंठ मेरे होंठों से हटाने की कोशिश की, तब तक मैं इतनी बेबाक हो चुकी थी कि मैंने उसके निचले होंठों को अपने दांतों में दबा लिया.

उसने किसी थके हुए लड़ाके कि तरह वहीं रुक कर कुछ गर्म सांसें लीं, फिर मुझे एक पल देखकर धीरे से अपने होंठों से पहले मेरे निचले होंठ दबा लिए, फिर उन्हें अपने दांतों के बीच दबाकर खुद के होंठ छुड़ा लिए.

मेरा मन अभी और चाहता था लेकिन जब तक मैं कुछ करती, सारांश फिर से मेरे स्तनों पर झपट पड़ा.
एक तूफान जाता नहीं था कि दूसरा दस्तक दे देता था … और तीसरा आकार लेने लगता.

मैं अपनी जांघों के ऊपर एक तूफ़ान को आकार लेते महसूस कर रही थी.
जितना वो तूफ़ान बड़ा होता, मेरा दिल उतना ही सहम जाता.

लेकिन उसके मुझ पर से गुजर जाने की अभिलाषा भी उतनी ही बड़ी होती जा रही थी.

ना जाने और क्या-क्या सोचती मैं … लेकिन तभी सारांश ने मेरा दाहिना स्तन पूरी तरह से अपने मुँह में लेने की एक असफल कोशिश कर डाली.

जबकि मेरा बांया स्तन आटे की तरह उसकी हथेली से गुंथा जा रहा था.
मेरा स्तन उसके मुँह में जितना भी समा सका, वह धीरे-धीरे उसने अपने मुँह से निकल जाने दिया.

लेकिन मेरा निप्पल उसने अपने दांतों के बीच फंसा लिया और साथ ही साथ मेरी जान और कुछ हज़ार सिसकारियां मेरे गले में फंस गईं.

जैसे किसी सीधे खड़े बरगद का अहंकार बिजली ने तोड़ा हो, उसने मेरे तने हुए निप्पल को दांतों के बीच धीमे-धीमे चबाकर उनका घमंड मिटा दिया.

हर बार की तरह मजे का दर्द देने के बाद उसकी जीभ मजे का मरहम देने उस निप्पल से लिपट गयी.

लेकिन अब मुझसे सहा नहीं जा रहा था, मैंने थोड़ा प्रयास करके अपने कंधे के सहारे उसका सर मेरे बाएं स्तन पर खिसका दिया.

वो समझ गया कि मुझे वह दर्द बराबरी में चाहिए था और उसने दिया भी!
वह मजेदार दर्द, मेरे बाएं स्तन को खाने के असफल प्रयत्न से, मेरे दाएं स्तन का आटे के गोले की तरह मर्दन करते हुए मुझे दिया जाने लगा.

मैं मचलती हुई वहां एक मदहोश प्रेमिका की तरह पड़ी रही.
अपने होंठों को अपने दांतों के बीच काटती हुई अपनी जांघों के बीच बाढ़ को थामती हुई मैं भीग उठी थी.

इस जद्दोजहद में उसके कूल्हों ने एक जोर का धक्का मारा.
मेरे साड़ी पहने होने के बावजूद भी मैं चौंक गयी.

सारांश ने मेरे स्तनों के ऊपर से अपना सर हटा दिया.

हमारी आंखें मिलीं.
ना मैंने कुछ कहा, ना उसने … और बात हो गयी.

बिस्तर से उतरकर खड़े होते-होते ही उसने मेरी साड़ी का किनारा पकड़ा.
मैंने अपनी कमर उठायी और उसने पहले मेरी साड़ी और फिर पेटीकोट को फर्श के सुपुर्द कर दिया.

फिर उसके हाथ मेरी पैंटी की तरफ बढ़ ही रहे थे कि अचानक सामने का नज़ारा देखकर रुक गए.
वही पतली ना के बराबर की काली पैंटी, जो मेरे पति के लिए सरप्राइज़ थी, सारांश को सरप्राइज़ कर गयी.

उसने एक बार मेरे चेहरे को देखा और फिर से पैंटी पर उसकी आंखें टिक गईं.

मेरी अधीरता पढ़ी होगी उसने … लेकिन काले झीने परदे सी पैंटी से झांकती मेरी साफ़ गुलाबी गीली योनि ने उसे सम्मोहित सा कर रखा था.

बस आंखें थीं उसकी मुझ पर … लेकिन किसी छुअन से कम नहीं थीं वो!
उसके खून का उबाल उसके माथे पर आए पसीने में साफ झलक रहा था.

फिर जैसे ही सारांश एक कदम पीछे लेकर सीधा खड़ा हुआ, उबाल की आंच बढ़ाने के लिए, मैंने अपने पांव दूर-दूर फैलाकर बिस्तर के ऊपर रख लिए, जिससे मेरी झांकती हुई योनि के होंठ थोड़े खुल से गए.

पैंटी इतनी पतली थी कि होंठों के खुलने से भी थोड़ा हिस्सा बाहर आ गया.
उस जरा से हिस्से के बाहर आने से जैसे सारांश की जान जरा जाने सी लगी और जो नहीं गयी थी, वह तब चली गयी, जब मेरी बरसाती योनि से मेरे प्रेमरस का एक कतरा बह निकला.

सारांश के कदम धीरे-धीरे और पीछे जाने लगे और हाथ पहले उसकी शर्ट, फिर पैंट और फिर बनियान निकालने में लग गए.
आगे का नज़ारा देखने के लिए मेरी कोहनियों ने खुद ही सहारा दे दिया ताकि मेरा सर जरा उठ जाए.

जब सारांश कि आंखें मेरी बहती हुई योनि पर टिकी थीं, मेरी प्यासी आंखें उसकी कसरती छाती, सपाट पेट और उसके अंडरवियर में बने तम्बू पर टिकी थीं.

सारांश कुछ कदम पीछे जाकर जैसे ही रुका, पता नहीं मुझे क्या सूझा कि मैंने अपने हाथ से अपनी पैंटी पूरी तरह से अपनी योनि से नीचे सरका दी.

मेरी पैंटी जांघों में फंस गई थी.
सारांश ने मेरी योनि का रूप देखकर मानो अपने मुँह से एक पूरा सागर निगल लिया हो.

लेकिन अगले ही पल एक समंदर निगलने की बारी मेरी थी.
उसने बिना मेरी योनि से नज़रें हटाए, अपनी अंडरवियर निकाल कर एक तरफ फेंक दी.

एक पल के लिए हमारी नज़रें मिलीं और फिर मेरी योनि पर नज़र वापस लाते हुए उसने अपने लिंग को उसकी जड़ से लेकर चोटी तक सहलाया, जैसे उसकी पूरी लम्बाई का अंदाज़ा देना चाहता हो.
उसके लिंग के आकार को देखकर मेरे हाथ से मेरी पैंटी छूट गयी.

लम्बाई तो मेरे पति के लिंग की भी कम नहीं है, सारांश से थोड़ी सी ही कम होगी, लेकिन सारांश के लिंग की मोटाई ने मुझे अचंभित कर दिया था.
मेरी कलाई से थोड़ी ही कम मोटाई रही होगी.

उसके तनतनाते लिंग को देखते ही मेरी योनि थोड़ी और पिघल गयी, जरा और फड़क गयी.
वो प्यासी तो थी ही पहले से, अब बदरा की टोह में बंजर सी हो गयी.

उसके लिंग का डर था मुझे, लेकिन लीलने की उत्सुकता ज्यादा थी.

सारांश अपने कड़े लिंग को सहलाते हुए धीरे-धीरे मेरी तरफ बढ़ने लगा … और ना जाने क्यों, मैं बिस्तर पर ही पीछे सरकने लगी.

इससे पहले कि मैं और सरक पाती, सारांश मुझे बिस्तर पर पूरी तरह से धक्का देकर मुझ पर झपट पड़ा.

अगले ही पल उसके होंठ मेरे बदन के कोर-कोर पर अपने निशान छोड़ रहे थे.
उसकी खुरदुरी जुबान मेरे कोमल अंगों को दहला भी रही थी और सहला भी!

मेरी शर्म का पर्दा मेरी योनि के उजागर होने के बाद से ही उठ गया था.
अब मैं खुलकर आहें भर रही थी.

मेरी हथेलियां कभी उसके बालों में, तो कभी उसकी पीठ पर आसरा ढूंढ रही थीं.
वो मेरे बदन को चूमता, चाटता, कभी सूंघता, कभी काटता, मेरे बालों से मेरे पेट तक चलता गया और ठीक मेरी योनि के ऊपर आकर रुक गया.
मेरी योनि तर-बतर हो चुकी थी.

उसने अपनी नाक ठीक मेरी योनि के ऊपर रखी और जोर से मेरे प्रेमरस की सुगंध अपनी सांसों में भर ली.
फिर वो किसी वहशी की तरह मेरी भीतरी जांघों को चूमने लगा.

उसे पता था कि मैं उसके होंठ अपनी योनि के होंठों पर चाहती थी. उसकी उंगलियों से मचलना चाहती थी, उसके लिंग से दहलना चाहती थी.
लेकिन उसके होंठ मेरी योनि प्यासी छोड़, पहले जांघों … और फिर पैरों की तरफ आगे बढ़ गए.

उसके हर चुम्बन पर मेरे कूल्हे ऊपर उछलने लगे लेकिन वो नहीं पिघला, मुझे पिघलाता चला गया.
मेरे लिए अब सहना मुश्किल हो गया था.

तभी उसने अपना हाथ मेरे योनि पर रख दिया.
प्रेमरस से भीग चुकी योनि के ऊपर से ही और फिर उसे मुट्ठी में भींच लिया.

जिस छुअन का इंतज़ार था, उसके इतने अचानक और ऐसे आने से, जान में जान आयी भी … और थोड़ी गयी भी.
अगले ही पल उसकी मुट्ठी थोड़ी ढीली हुई और फिर से उसकी जीभ ने अपना काम शुरू कर दिया.

सारांश ने मेरी टांगों में फंसी भीगी पैंटी भी चाट ली.
मैं सिर उठा कर उसे ये सब करती हुई देख रही थी.
एक अलग ही नशा था इस तड़प में.

उसने अपनी जीभ हटा कर पहले एक हाथ से मेरी पैंटी एक तरफ सरकायी और फिर दाहिने हाथ की उंगलियों से मेरी योनि की फांकों को सहलाया.
फिर मेरी मुश्किल से खुली आंखों को देखते हुए उसने मेरी योनि के होंठ खोल कर अलग-अलग किए और मेरे देखते-देखते ही पहले अपनी लपलपाती जीभ से मेरी योनि की दीवारों पर किसी पेंटर की तरह ब्रश चला दिया.

फिर अचानक से मेरी योनि में अपनी जुबान को किसी तीर सा भेद दिया.

आह … आनन्द के इस आकस्मिक विस्फोट से मेरी आंखें पहले बंद हुईं और जैसे-जैसे उसकी जीभ कभी फांकों पर, कभी कोनों पर, कभी गहराई में वार करती गईं, मैं बिस्तर पर कभी सिर कभी हाथ पटक का छटपटाती रही.

हॉट ओरल में मेरी आहों से कमरा गूंजने लगा.

योनि के सभी कोने खंगालने के बाद सारांश ने एक ही बिंदु पर वार करना शुरू किया.
पहले दसियों वार हुए, फिर जब होते चले गए तो मैं गिनती भूल गयी और अपने कूल्हों को उचकाकर उसकी जीभ से योनि लड़ाती हुई अपनी दुनिया में लीन हो गयी.

थोड़ी देर में मेरे बदन में चरमसुख की दस्तक होने लगी.
मैंने उसका सिर और भी जोर से योनि में डालने की कोशिश की, लेकिन वह उसी बिंदु पर बना रहा.

एक बार जैसे तैसे आंख खोल कर जब मैंने उसे देखा तो ऐसा महसूस हुआ, जैसे सारांश किसी तपस्या में लीन था.
तन्मयता की अतिरेकता से वो अपने लक्ष्य की ओर बढ़ा जा रहा था.

जैसे ही मैंने आंखें बंद की, मेरा बदन चरमसुख की प्राप्ति से कांपना शुरू करने लगा.

तब सारांश ने रात की सबसे गज़ब चीज़ की.
उसने अपनी एक उंगली अपनी जीभ के नीचे से मेरी योनि की गहराई में डाल दी और दूसरे हाथ से मेरे कूल्हों को थाम कर जीभ से अभी भी उसी बिंदु पर वार कायम रखा.

मेरा बदन चरमसुख की आंधी में फड़फड़ाता रहा और उसकी जीभ और उंगली बारी-बारी से अपने बिंदुओं पर वार करती रही.
जैसे ही चरमसुख की चोटी से मैं किसी कटे हुए पेड़ की तरह गिरने लगी, सारांश ने मेरी पूरी योनि अपने मुँह के अन्दर दबोच ली.

वो मेरे प्रेमरस का हर कतरा पी गया.
बुरी तरह से हांफती हुई मैं बिस्तर पर निर्जीव सी पड़ गयी.

मेरे उभार तेजी से ऊपर नीचे हो रहे थे.
जब वे नीचे होते, मैं सारांश को देख पाती.
मेरे पैरों के किनारे पड़े हुए, वो वैसे ही हांफ रहा था, जैसे मैं हांफ रही थी.

वो भी मुझे नशीली आंखों से देख रहा था.

एक-दूसरे को देखते-देखते ही हमारी सांसें काबू में आईं.
जिस पल वो काबू में आईं, सारांश फिर से गति में आ गया.

मुझे लगा कि शायद वो एक भी पल व्यर्थ नहीं जाने देना चाहता था लेकिन जैसे ही वो अपने घुटनों के बल खड़ा हुआ और मैंने उसके हथौड़े जैसे सख्त लिंग को उसके परम-स्वरूप में पाया तो मुझे आभास हुआ कि अब उसके सब्र का बांध भी टूट चुका था.

दोस्तो, सेक्स कहानी का अगला भाग आपको भरपूर मजा देगा.

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