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रिश्तों की मर्यादा ताक पर रख दी

फादर डॉटर सेक्स जिन पाठकों को भाता हो वे ही इस कहानी को पढ़ें. मेरे पापा की मौत के बाद मेरी मम्मी की शादी चाचा से ही गयी थी. मैं उन दोनों की चुदाई देखा करती थी.

मेरा नाम अन्नू है और मैं बीएससी सेकंड ईयर की स्टूडेंट हूँ.
मेरे पापा दिल्ली पुलिस में हैं.
मम्मी एक हाउस वाइफ हैं. उनका नाम शालिनी है.
पर पापा ने उनका नाम कामिनी रख दिया है.

हम सब यूपी के लखनऊ के पास एक छोटे से शहर बरेली के रहने वाले हैं.

जिन पाठकों को पारिवारिक सेक्स सम्बन्धों में रूचि नहीं है, वे इस कहानी को यहीं पर छोड़ कर कोई दूसरी कहानी पढ़ें.

फादर डॉटर सेक्स कहानी की शुरूआत तो तब ही हो गई थी, जब मैं छोटी थी.
उस वक्त हम सरकारी क्वार्टर में रहते थे. वहां एक ही कमरा था.

असल में मेरे सगे पापा और उनके भाई यानि मेरे चाचा दोनों पुलिस में थे.
पापा की मृत्यु कई साल पहले हो गयी थी, तब चाचा की शादी नहीं हुई थी.
तो परिवार वालों ने मेरी मम्मी और चाचा की शादी करवा दी थी.
तब मेरे चाचा ही मेरे पापा बन गए थे.

उस वक्त मैं मम्मी पापा(चाचा) के बीच में सोती थी. तब मैं छोटी थी.

उस रात जोरों की बिजली कड़क रही थी और अचानक से मेरी नींद खुल गई.

पर उससे भी डरावना दृश्य मेरी आंखों के सामने था.

मेरी आंखों के सामने पापा मम्मी को चोद रहे थे और वो जोर जोर से चीख रही थीं.
मैं उस वक्त कुछ न समझ पाई और डर के मारे मम्मी के करीब होकर मैंने उनको पकड़ लिया.

मुझे पास देख मम्मी झिझकीं पर पापा ने उनको जकड़ लिया और धक्कों की रफ्तार और तेज कर दी.
इससे मम्मी के चूचे और जोर जोर से हिलने लगे.

थोड़ी देर में पापा रूके और मम्मी को इशारे से कुछ कहने लगे.

फिर मम्मी घोड़ी की तरह खड़ी हो गईं तो पापा पीछे से उनकी कमर पकड़ कर उनकी लेने लगे.
मम्मी की चूत से फच्च फच्च की आवाज आने लगीं.

कुछ देर के बाद ये आवाजें बढ़ गईं और इसी के साथ पापा का घोड़े जैसा लंड बाहर निकल आया.
मम्मी की चूत से सफेद धार टपकने लगी.

मैं कौतूहल से हाथ बढ़ा कर उनकी चूत छू बैठी. तभी मम्मी ने मुझे लगभग डांटते हुए कमरे में भेज दिया.
करीब दस मिनट बाद दोनों कमरे में आए और सो गए.

उस रात के हादसे के बाद जल्द ही हमारा सरकारी आवास खाली हो गया और हम किराए के फ्लैट में आ गए.
इसमें दो कमरे थे.

इस घर के साथ कुछ और भी बदल गया था.
मेरी रातों की नींद गायब हो गई थी.

वो घटना मेरे दिलो दिमाग में घर कर गई थी और उससे मुझे एक अनजानी सी खुशी मिलने लगी थी.
अब मैं ज्यादातर रातों को जागती और उनके कमरे के दरवाजे में बने एक छोटे से छेद से उनकी चुदाई का आनन्द लेती.

महीने के कम से कम दस रातें तो मेरी भी रंगीन होने लगी थीं.
पापा का मोटा लम्बा लंड मेरे सपनों का लंड बन गया.

मैं इन्हीं सबके साथ जवान हुई और इंटरमीडिएट पास करके रिजल्ट्स का वेट कर रही थी.

मेरा प्रारब्ध भी शायद उसी वक्त का इंतजार कर रहा था.

एक दिन मामा का फोन आया.
वो लोग लड़की देखने जाने वाले थे तो मम्मी पापा को भी बुलाया गया.

पापा किसी काम में बिजी थे तो उन्होंने मम्मी को अकेले ही भेज दिया.
सुबह की ट्रेन से मम्मी मायके गईं और पापा ऑफिस चले गए.

मैं घर में अकेली बची थी.
मैंने घर के काम काज किए और नहाने आ गई.
बाथरूम में कपड़े उतारे तो याद आया कि क्यों ना आज झांटों की सफाई की जाए.

मैं कमरे में आई और आईने के सामने नंगी बैठ कर बड़े प्यार से झांट की सफाई करने लगी और फिर कामुक मन से अपनी फूली हुई चूत पर थोड़ा मॉइश्चराइजर लगा कर उसे सहलाने लगी.

तभी अचानक दरवाजा खुला और डर से सारी कामुकता मेरी गांड में घुस गई क्योंकि दरवाजा पापा ने खोला था.

मैं उनकी नजरों से बचने की नाकाम कोशिश करने लगी पर वहां अपने गदराए जिस्म को ढकने के लिए कोई कपड़ा नहीं था.
खैर … जब पलकें उठाईं, तो पापा जा चुके थे.

मैं डर से कांपते पैरों के साथ बाहर निकली और बाथरूम में घुस गई और किसी तरह नहाई.

एक घंटे के बाद मेरी एक सहेली का फोन आया और हम दोनों शॉपिंग करने चले गए.
तीन बजे करीब हम लौट रहे थे कि रास्ते में तेज मूसलाधार बारिश शुरू हो गई और हम भीगते घर पहुंचे.

मैं अभी दरवाजा खोल ही रही थी कि तभी स्कूटर की आवाज सुनाई दी और पीछे मुड़ कर देखी तो पापा भी आ गए थे.

मैंने दरवाजा खोला और पापा भी भागते हुए अन्दर आ गए.
बारिश में वो भी पूरे भीग चुके थे.

खैर … मैं बाथरूम गई और कपड़े बदले.

मैंने अंडरगार्मेंट्स नहीं पहने क्योंकि वो छत पर ही सूखने के बजाए भीग चुके थे.
तो मैंने टॉप और स्कर्ट पहना और बाहर आ गई.

सामने डाइनिंग टेबल पर पापा लुंगी और कुर्ता पहने फोन चला रहे थे.

मैंने उनसे चाय के लिए पूछा तो उन्होंने बनाने को कहा.
मैं किचन से चाय बना कर लाई तो पापा के पीछे रखी अलमारी में लगे शीशे में उनकी फोन की स्क्रीन दिखी, जिसमें वो एडल्ट फिल्म देख रहे थे.

मैं डर से कांप गई और ट्रे में रखे कप आपस में टकराने लगे.
पापा ने मेरी तरफ देखा और फिर मुड़ कर पीछे अलमारी के आईने में!
वो समझ चुके थे कि मैंने देख लिया था.

फिर मैंने ट्रे को टेबल पर रखी और वापिस सहमे कदम उठा कर किचन में चली आई और सब्जियां काटने लगी.
थोड़ी देर में पापा खाली कप लेकर आए और सिंक में रख कर मेरे पीछे खड़े हो गए.

फिर अचानक से मुझे मोड़ा और जमीन पर बैठ मेरी स्कर्ट उठा दी.
मैं कुछ समझ पाती कि पापा ने अपनी जीभ मेरी चूत पर लगा दी और चूत को चाटने लगे.

मैं मारे वासना के थर थर कांपने लगी और हट कर थोड़ी दूर खड़ी हो गई.
वो मेरी तरफ बढ़े और मुझसे लिपट ऊपर ही ऊपर मेरे चूचे सहलाने लगे.

मेरे तन बदन में बिजली कौंधी और मैंने उनको धकेल दिया, वो बाहर चले गए.

मैं किचन में खड़ी सोचती रही और जब भी आंखें बंद करती, तो लगता मानो वो अब भी मेरी स्कर्ट के नीचे बैठे हों.
एक अजीब सा द्वंद्व मेरे मन में चल रहा था और मेरे अन्दर दो भावनाएं आपस में टकरा रही थीं.

एक तरफ जिस्म की भूख थी और दूसरी तरफ रिश्तों की मर्यादा.
घंटों की टकराहट के बाद जिस्म की भूख जीत गई और रिश्ते हारने को राजी थे.

बाहर के मौसम ने अन्दर की चिंगारी को आग बनाया और कामुकता ने हिम्मत भरी.
मैंने किचन में ही कपड़े खोल दिए और लहराती हुए बाहर निकली.

बाहर पापा तो नहीं थे पर अल्मारी में लगे शीशे में मेरा कामुकता से भरा पूरा बदन देख मैं पूरे ताव में आ गई.
मैंने हाई हील के सैंडल पहने और उनके कमरे में आ गई.

वो बिस्तर पर लेटे अब भी एडल्ट फिल्म देख रहे थे.
मैं उनके सामने एकदम नंगी खड़ी थी और अपने दोनों हाथ अपने सर पर रख कर अपनी चूचियां ताने उन्हें अपनी प्यासी जवानी दिखा रही थी.

मुझे इस हाल में देख वो पहले चौंके और फिर मुस्कुरा दिए.
फिर वो मेरी ओर बढ़े और मेरे ठीक करीब आकर अपने होंठ मेरे होंठ के करीब लाकर रुक गए.

मैं समझ गई.
वो मेरी रजामंदी का इंतजार कर रहे थे.

मैंने बिना समय गंवाए उनके होंठों को चूम लिया.
उनको इजाजत मिल गई थी और उन्होंने मुझे बांहों में भर लिया.

फिर अगले दस मिनट में शायद ही कोई ऐसा अंग बचा होगा जहां उन्होंने मुझे चूमा न हो.

उसके बाद उन्होंने मेरे पैर फैलाए और अपना मुँह मेरी चूत से चिपका दिया.

फिर पापा ने जो चाटना शुरू किया, तो समझो अगले ही पल मैं जल बिन मछली बन छटपटाने लगी, मेरी सांसें चढ़ने लगीं.

मेरी चूत के अन्दर जैसे कीड़े काट रहे हों, ऐसी खुजली होने लगी.
थोड़ी देर बाद एक गर्म धार, चूत की नली को भिगाते बाहर निकली.

पर पापा ने बूंद बूंद रस चट करके चूत को साफ कर दिया.
मैं अब बेकरार के साथ बेशर्म भी हो गई थी.

बेशर्मी दिखाते हुए मैंने पापा को रोका और उनके कपड़े उतारने लगी.
जल्द ही मेरे सामना मेरा हट्टा-कट्टा गबरू जवान बाप नंगा खड़ा था और उनका तोप सा तना लंड मेरे सामने लहरा रहा था.

पापा का लंड कम से कम चार इंच मोटा और आठ इंच लंबा होगा.
मैं पापा के कड़क लंड को देख अधीर हो गई.

थोड़ा रोकते हुए पापा ने मुझे बिस्तर पर लिटाया और मेरा सिर बिस्तर से बाहर की तरफ लटका दिया.
फिर मुझ पर झुक कर मेरी चूत को रगड़ते हुए मेरे मुँह में लंड का सुपारा देकर हल्के हल्के मेरे मुँह की चुदाई शुरू हुई.

पर जल्द ही मुझे पता चलने लगा कि ये इतना आसान भी नहीं था क्योंकि वक्त के साथ रफ्तार और गहराई दोनों बढ़ रही थी.

कई बार तो लगा जैसे उल्टी हो जाएगी, पर किसी तरह मैं खुद को संभाल लेती.

करीब दस मिनट बाद एक बार फिर से मेरी चूत से गर्म पानी रिसता हुआ मेरी गांड से नीचे टपकने लगा और उन्होंने लंड मुँह से निकाल दिया.
अब उन्होंने मुझे नीचे उतारा.

उन्होंने मेरे एक पैर को बिस्तर पर … और दूसरा जमीन पर रखवाया जिससे मेरी चूत खुल गई.

फिर पापा ने पीछे आकर मुझे थोड़ा आगे झुका दिया, अपने सुपारे पर थोड़ा थूक मला और उसे मेरी चूत की छेद पर रख दिया.

सुपारे को छेद से टिका कर हल्का हल्का दबाने लगे.
मुझे थोड़ा दर्द होने लगा तो मैं थोड़ा कसमसाई.

पर उन्होंने मेरी चूचियों की घुंडियों पर उंगलियां फंसाईं और मसलने लगे.

इससे मैं कराह उठी और उत्तेजित भी होने लगी.

इन्हीं सबके बीच अचानक मेरी चूत में हल्का दर्द हुआ और मुझे अहसास हुआ कि मेरी चूत में कोई गर्म सलाख अन्दर घुस गई.
तभी कुछ खून की बूंदें फर्श पर गिरीं और मैं अब लड़की से औरत के सफर पर चल पड़ी.

धीरे धीरे करते हुए अगले कुछ धक्कों में लंड मेरी चूत में समा गया.
फिर पापा ने मुझसे लिपटते हुए पूछा- कैसा लग रहा है?

मैं आंखों में आंसू लिए भरे गले से ‘बहुत अच्छा लग रहा है पापा …’ बोल दी.

फिर पापा ने लंड निकाला और मैं लड़खड़ाते कदमों पर खड़ी हुई.
मैंने देखा उनका लंड मेरी चूत के खून से सना था.

उन्होंने मुझे लिटाया और एक गीले कपड़े से पहले अपना लंड और फिर मेरी चूत की सफाई की और अपने कबर्ड से एक जैल निकाल लाए.
उसे अपने लंड पर लगा कर लंड की मालिश की और वापस मेरी चूत में अन्दर तक लगा दिया.

वो फिर से मेरे ऊपर चढ़ गए और मेरे पैर फैला कर धीरे धीरे लंड अन्दर तक घुसाने लगे.
लंड अन्दर चला गया तो पापा हल्की रफ्तार में मेरी चूत की चुदाई करने लगे.

कुछ ही पल में मस्ती से मेरे आंखें बंद होने लगीं और मैं मस्ती में सिसकारने लगी.
मुझे आराम मिलने लगा था. मगर ये आराम ज्यादा देर न चल सका.

दो ही मिनट बाद उन्होंने रफ्तार को बढ़ा दिया.
अब पापा के हर धक्के के साथ मेरी चीख निकलने लगी और मेरी चूत लंड की रगड़ से गर्म होकर पानी छोड़ने लगी.
इससे पापा का लंड और आसानी से चूत की गहराई तक पहुंचने लगा.

जल्द ही कमरा मेरी चीख पुकार से गूंजने लगा.
ऐसे ही आधा घंटा बाद पापा ने लंड बाहर निकाला और मेरे मुँह में ठूंस कर मेरे मुँह को ही चोदने लगे.

अगले ही कुछ पल बाद मेरे मुँह में पापा ने अपने लंड से निकला चिपचिपा नमकीन बदबूदार पानी भर दिया.
उन्होंने लंड पेल कर मेरा मुँह दबाए रखा और न चाहते हुए भी वो सारा मुझे पीना पड़ा.

इसके बाद पापा मेरे बगल में लेट गए और मेरी तरफ देखते हुए मुस्कुराए.
मैं शर्म से पानी पानी हो गई और आंखें बंद कर मैं भी मुस्कुरा दी.

उस रात तो हम दोनों सो गए पर अगली सुबह मेरा पूरा बदन टूट रहा था और चूत भी दर्द दे रही थी.
मैंने देखा तो मेरी चूत सूज चुकी थी.

थोड़ी देर बाद पापा बाहर गए और मेरे लिए दवाई ले आए जिसको खाकर दोपहर तक मैं ठीक हो गई.
शाम सात बजे पापा घर आए तो खाना बाहर से ही लेते आए.

पहले हमने खाना खाया और बाद में एक दूसरे को खिलाया.

उसके बाद फिर फादर डॉटर सेक्स शुरू हो गया.

आज मैं पापा की परी बन कर उनके लौड़े के ऊपर खूब कूदी और झूला झूलती हुई पापा को अपने दूध पिला कर मस्त कर दिया.

अगले तीन दिन में मेरी दस बार चुदाई हुई.
फिर उसके अगले दिन मम्मी वापिस आ गईं.

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